सुप्त हो चुकी हैं संवेदनाएं
उनकी क्यूँकर
छा गई है बदली काली
विश्वास पर क्यूँकर
है मरघट सी विरानी
रिश्तों में क्यूँकर
अटके शब्द उल्लास के
हिय में क्यूँकर
सुवास उमंगो की
नहीं रही क्यूँकर
ठहरा है सूनापन
दोस्ती में क्यूँकर
मौन है सखा अब
जाने क्यूँकर
सुप्त हो चुकी है
संवेदनाएं उनकी क्यूँकर
Friday, October 12, 2007
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1 comment:
सुन्दर भाव पूर्ण रचना मगर कहीं कही अटक रही है...प्रथम और अंतिम पंक्तियाँ खूबसूरत है...
सुनीता(शानू)
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